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| | मैं और मेरे ईश्वर
मैं और मेरे ईश्वर सैर पर निकल पड़े साथ साथ चलते रहे ख़्वाब लेकर बड़े बड़े।
पर्वतों और झीलों के आड़ को लपेटे हुए हवा को संग लिए बादलों के ऊपर उड़े
जीवन के रंगों में ढले हर मोड़ पर सीखते हुए ज्ञान और विज्ञान के अंतर को समेटते चले।
न कोई डर न कोई भय गिर के फिर सँभलने का हर एक लम्हा जो जी लिए मेरे ईश्वर को समर्पित किए |
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